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‘विश्व-गुरू’ बनने का जुमला !!

सत्यानाशी
सत्यानाशी
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वर्ष 2016 के लिए सेंटर फॉर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की रिपोर्ट आ चुकी है. यह सेंटर पूरी दुनिया के शिक्षा संस्थानों को आठ मानदंडों पर कसता है — शैक्षणिक गुणवत्ता, रोजगार, शिक्षकों की योग्यता, प्रकाशन. प्रभाव, प्रतिष्ठा, शैक्षणिक बोर्ड की भूमिका तथा पेटेंट के मामलों में. इन आठ मानकों पर कसने के बाद यह सेंटर किसी संस्थान-विशेष की रैंकिंग तय करता है.

विश्व में हजारों शैक्षणिक संस्थाएं हैं और भारत में सैकड़ों. विश्व के पहले दस शैक्षणिक संस्थानों में हमारा स्थान पहले भी नहीं था. प्रथम सौ सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों में भी हमारी कोई जगह नहीं है. लेकिन हम खुश हो सकते हैं कि विश्व के प्रथम 1000 बेहतरीन शिक्षा संस्थाओं में से 16 हमारे देश के हैं. भले ही, आईआईटी-दिल्ली की रैंकिंग पिछले वर्ष के 341 से गिरकर 354 पर आ गई है, लेकिन यह आज भी देश की शिक्षा संस्थाओं में अव्वल है. इसका अर्थ है कि विश्व रैंकिंग में देश की अन्य श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग में भी गिरावट आई ही होगी ! हुआ भी ऐसा ही है — देश के दूसरे स्थान पर प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय की रैंकिंग पिछले वर्ष के 379 से गिरकर 419 हुई है, तो तीसरे स्थान पर खड़ी भारतीय विज्ञान संस्थान की रैंकिंग भी 448 से गिरकर 471 तथा चौथे पायदान पर खड़ी पंजाब विश्वविद्यालय की रैंकिंग 491 से गिरकर 511 पर पहुंच गई है. इससे स्पष्ट है कि देश में श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों के शैक्षणिक-स्तर में गिरावट आई है.

सेंटर फॉर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की यह रिपोर्ट हमारे देश में शिक्षा के गिरते स्तर पर तीखी टिप्पणी है. जिन मानकों पर शिक्षा संस्थानों को कसा गया है, प्रायः उन सभी में देश में अव्वल मने जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों में गिरावट दर्ज की गई है. शैक्षणिक गुणवत्ता की कसौटी पर आज भी कलकत्ता विश्वविद्यालय देश में अव्वल है, लेकिन विश्व रैंकिंग में इसका स्थान 140 से गिरकर 150 हो गया है. इसी तरह, सर्वाधिक जर्नल व अन्य प्रकाशनों के साथ भारतीय विज्ञान संस्थान ने देश में अपना अव्वल स्थान तो बनाए रखा है, लेकिन विश्व रैंकिंग में अपनी गिरावट को नहीं रोक पाया. पिछले साल इसे 315वां स्थान मिला था, तो इस बार इसे 327वां स्थान मिला है. इस संस्थान के बोर्ड की भूमिका देश में बेहतरीन है और इसने विश्व रैंकिंग में 470वां स्तान पाया है, लेकिन वह पिछले साल 447वें स्थान पर था. इसी तरह यह संस्थान पेतेंटके पैमाने पर विश्व रैंकिंग में 303वें स्थान पर और देश में अव्वल है, लेकिन पिछले साल 176वीं रैंकिंग के साथ आईआईटी-बॉम्बे देश में अव्वल था. इसका अर्थ है कि हमारे देश के बौद्धिक संस्थान पेटेंट की लड़ाई में विश्व-स्तर पर तेजी से पिछड़े हैं.

यदि विश्व रैंकिंग में गिरावट के साथ कुछ शिक्षा संस्थान देश में अव्वल बने हुए हैं, तो इसका अर्थ यह भी है किइन शिक्षा संस्थाओं के शैक्षणिक स्तर में भी गिरावट जारी है. लेकिन यदि वे फिर भी अव्वल बने हुए हैं, तो इसका यह भी अर्थ है कि अन्य शिक्षा संस्थानों के स्तर में और तेज़ी के साथ गिरावट जारी है. इसलिए यह अव्वलता ‘शैक्षणिक अभ्युदय’ नहीं, भारतीय शिक्षा संस्थाओं के पतन की ही कहानी कहती है.

क्या इसी गिरावट के साथ भारत ‘विश्व-गुरू’ बनने का दावा करेगा? यदि इस दावे को शिक्षा के क्षेत्र में जारी निजीकरण से जोड़कर देखें, तो यह स्पष्ट है कि अन्य बातों की तरह यह दावा भी एक ‘जुमला’ ही बनने जा रहा है.

sanjay.parate66@gmail.com

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